संदेश

जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शाकाहारी खानपान में छिपा है सेहत का राज

चित्र
एक सर्वे में यह पाया गया है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ शाकाहारियों के शरीर में कोलेस्ट्राल को संग्रहित करने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है लेकिन यह मांसाहारियों की तुलना में काफी कम होती है। शाकाहारी भोजन करने वाले व्यक्तियों की तुलना में मांसाहार भोजन करने वाले व्यक्तियों के लिये दिल के दौरे तथा रक्त परिसंचरण संबंधी रोगों के परिणाम अधिक घातक हो सकते हैं। अपने इस सर्वे में यह भी पाया कि शाकाहारियों को कैंसर होने की संभावना भी कम होती है। बच्चों में यह एक तरह की बीमारी सी होती है वैज्ञानिकों का कहना है कि चीनी से न केवल स्वादकलिकाओं में मधुरता बढ़ती है बल्कि आक्रामक शराबियों , शीघ्र नाराज होने वाले दुबले-पतले लोगों में तथा भोजन से पहले नखरे दिखाने वाले बच्चों में यह एक तरह की बीमारी सी होती है जिसे अग्लूकोजरक्ता (हाइपोज्वाइसीमिया) कहते हैं। यह बीमारी रक्त में शर्करा-स्तरों के कम हो जाने के कारण हो जाती है। आक्रामक व्यवहार करने लगता है हालांकि मस्तिष्क स्वयं में ऊर्जा को एकत्र नहीं कर सकता है , ऐसे में जब पर्याप्त मात्रा में मस्तिष्क को ग्लूकोज नहीं मिलता है तो वह आक्रामक व्यवहार करने लगत...

आखिर क्या है हिग्स बोसॉन?

चित्र
हिग्स बोसॉन या ईश्वरीय कण ऐसा आधारभूत कण है जो एक दृष्टि से सूक्ष्म से लेकर सबसे बड़ी संरचना के अस्तित्व का कारण है जिससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। प्रयोगशाला में इस कण को देखने के बाद इसकी तुलना धर्म से की जाने लगी। तब से धर्म बनाम विज्ञान संबंधी तमाम तुलनाएं और कहानियां कही जाने लगी। कुछ लोग इसको विज्ञान की विजय के रूप में देख रहे हैं , वहीं कुछ लोग इसको धर्म की विजय कह रहे है। कुछ लोग कह रहे हैं कि कुछ नया उद्घटित नहीं हुआ है क्योंकि कई प्राचीन धर्म पहले से ही ऐसा मानते हैं कि कण-कण में ब्रह्म व्याप्त है। सो , यह अविष्कार एक तरीके से उन्हीं मान्यताओं की पुष्टि है।   न ही ईश्वर के अस्तित्व को खारिज करती है और न ही उसका समर्थन करती है दिल्ली विश्वविद्यालय भौतिक विज्ञान के सहायक प्रो. मो. नईमुद्दीन का कहना है  कि ‘‘ मैं एक वैज्ञानिक होने के नाते और इस खोज से जुड़े होने के कारण हिग्स बोसॉन की धर्म या धार्मिक विश्वास से तुलना का कोई औचित्य नहीं समझता। मैं यहां यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हिग्स बोसॉन जैसे कण की खोज न ही ईश्वर के अस्तित्व को खारिज करती है और न ही उसका कोई सम...

घरेलू महिलाएं आखिर क्या करें जब आ जाए कोई संकट

चित्र
हमारे देश में स्त्री-शिक्षा का प्रचार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है, परंतु देखा गया है कि शिक्षित महिलाओं में भी किसी रोग या दुर्घटना के समय प्रारंभिक उपचार का बहुत कम ज्ञान होता है। बच्चा कोई वस्तु निगल जाय, विषैली वस्तु खा जाय, जल जाय, गिर जाये, डूब जाय तो प्रारंभिक उपचार न होने के कारण अनेक बहुमूल्य प्राणों की हानि हो जाती है। अतएव प्रारंभिक उपचार का ज्ञान प्रत्येक मां व गृहिणी के लिए आवश्यक है। अगर बच्चा कुछ निगल गया हो तो तत्काल डाक्टर की सहायता लीजिए बच्चे नाक या कान में भी कई वस्तुएं डाल देते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें चिमटी से सावधानी से निकाल लिया जाना चाहिए। बच्चों की यह आदत होती है कि जो भी चीज मिल जाये उसे निगल जाते हैं। ऐसे में पिन या सुई खतरनाक सिद्ध हो सकती है। अगर पिन या सुई मुंह में हो तो बड़ी सावधानी के साथ हाथ डालकर उसे निकाल लीजिए। अगर निगल लिया गया हो तो तत्काल डाक्टर की मद्दत लेने से कोई संकोच न करें।  अगर बच्चा कोई विषैली वस्तु खा ले तो डॉक्टर के आने तक बच्चे को तत्काल कुल्ला करा दीजिए। कुल्ला कराने के लिए दूध या पानी पिलाकर गले में अंगुली डालिए। अगर बच्चा पी ...

हृदय के लिए क्या घातक होते हैं मानसिक दबाव?

चित्र
क्या मानसिक दबाव हृदय के लिए घातक होते हैं या नहीं इस बात पर एक सामान्य धारणा यह है कि मानसिक दबाव हृदय के लिए घातक होते हैं और इससे पीड़ित व्यक्ति अक्सर हृदय रोगों के शिकार होते है। लेकिन कुछ परीक्षणों ने इस ओर इशारा किया है कि यदि मानसिक दबाव अकस्मात न हो और उसकी मात्रा धीरे-धीरे बढ़ी हो तो वह घातक नहीं होता है। इसके उलट इस तरह का दबाव किसी भी व्यक्ति को उसके अपनी सामाजिक परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाने में सहायक साबित होता है।   कैसे होने लगता है दिल तंदुरुस्त? शारीरिक क्रिया वैज्ञानिकों के एक दल ने पहली बार प्रमाणित किया है कि कैसे दबाव हृदय की रक्षा करता है, उस अंग की जिस पर दबाव का असर सबसे पहले पड़ता है। यह देखा गया है कि धीरे-धीरे दबाव के अनुकूल बन जाने से दिल की धड़कन की गड़बड़ी और अचानक दिल का दौरा पड़ना रूक जाता है। दबाव के प्रतिक्रिया स्वरूप शरीर उसके प्रभाव को परिसीमित करने वाली प्रणालियों को चालू कर देता है। यद्यपि स्वयं दबाव तंत्रिका प्रणाली पर पड़े अतिभार से नहीं।  आखिर अहम भूमिका कौन अदा करता है? चहों पर एक शोध कार्य किया गया जिसमें चूहों के शरीर में कृत्रिम जीव-र...

ब्लैक होल्स आखिर होता क्या है?

चित्र
प्रकृति और ब्रम्हाण्ड के ऐसे अनेक तथ्य तथा रहस्य हैं जिन्हें मनुष्य आज तक जान नहीं पाया है। प्रकृति के व्यापक साम्राज्य में जो भी घटनाएं घटती हैं वे सकारण होती हैं। उनके पीछे सुनिश्चित लक्ष्य होते हैं। मनुष्य अपनी चैतन्य शक्ति का मात्र सात प्रतिशत भाग प्रयोग में लाता है। शेष 93 प्रतिशत निरर्थक एवं व्यर्थ की चिन्तनों में नष्ट कर देता है। सुप्रसिद्व नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक एलेक्सिस कैरेल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक - ‘मेन दी अननोन’ में इस बात का संकेत किया है कि प्रकृति का व्यापक विस्तार अपने आप में अद्भुत रहस्य छिपाये हुए है। एलेक्सिस कैरेल की यह मान्यता है कि यदि मनुष्य अपनी शत-प्रतिशत मानसिक और आत्मिक शक्तियों को जागृत कर ले तो इस प्रकृति और ब्रह्माण्ड में घटित होने वाली सभी घटनाओं के रहस्यों को जान लेने में सक्षम हो जायेगा, यहॉं तक की पदार्थ जगत के पीछे जो अस्तित्व कार्य कर रहा है, उसकी भी कुंजी उसके हाथ लग सकती है। लेखक ने इस बात का भी संकेत किया है कि भौतिक जगत परमाणुओं का योग है, जो वस्तुतः सापेक्षता के सिद्वांत से जुड़ा हुआ है। जलयान, वायुयान और अनेक शक्तिशाली नौकाएं गायब हो...

अगस्त क्रांति : जिसने हिला दी अंग्रेजी हुकूमत की जड़े

चित्र
भारत के लम्बे स्वतंत्रता आंदोलन में अगस्त क्रांति ऐसा निर्णायक दौर था जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद को स्पष्ट संकेत दिया कि उपनिवेशवाद का युग अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। अगस्त क्रांति का सूत्रपात महात्मा गाँधी द्वारा “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आन्दोलन के साथ हुआ। देखते ही देखते यह एक जन आंदोलन बन गया जिसमें कई नए-नए शक्तिपुंज उभर कर सामने आए। महात्मा गाँधी समेत कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं को जेल में डालकर अंग्रेजों ने अनजाने में ही नई पीढ़ी के हाथ में स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर सौप दी थी। इस युवा पीढ़ी के इरादे व तेवर और भी अधिक आक्रामक थे। जेल में कैद नेताओं की अपील पर नवयुवक और भी उत्साहित हो चले थे।  आंदोलन के नेतृत्व में युवा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हो गई   अगस्त क्रांति के दौरान जो महत्वपूर्ण युवा नेता उभरकर सामने आए उनमें जय प्रकाश नारायण, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन तथा अरुणा आसिफ अली थे। इनको वैचारिक और सैद्धांतिक प्रेरणा देने वालों में आचार्य नरेन्द्र देव और डॉ.सम्पूर्णानंद प्रमुख थे। यह युवा नेतागण और उनके प्रेरणा स्त्रोत रहे कांग्र...

हाथ बताते हैं आपके सेहत का हाल

चित्र
शरीर के अंगों में हाथ का अपना एक अलग ही महत्व है। इसकी आकृति और बनावट का शरीर और दिमाग से पूर्ण रूप से संबंध है। दिमाग जितना अधिक विकसित होगा उतना ही हाथ की बनावट सुंदर होगी। जानवरों को अंगूठा नहीं होता, जो कि उनके अपूर्ण विकसित होने का प्रमाण है। यह इस बात का प्रतीक है कि उनमें स्वतंत्र विचार और इच्छाशक्ति का अभाव है। शरीर और दिमाग में जो कुछ भी चलता है उसकी प्रतिक्रिया हाथ पर दिखाई देती है प्राचीन भारत में हाथ का अध्ययन ज्यादातर ज्योतिषी करते थे या फिर वैद्य करते थे। बदलते समय के साथ-साथ वैद्यों ने इस काम को तिलांजलि दे दी है, पर अभी भी ज्योतिष विज्ञान जारी है। पुराने ग्रीक में प्लेटो और अरस्तु का हाथ के अध्ययन से बीमारी की जानकारी करने पर विशेष जोर था। न्यूयार्क के एक चिकित्सा अधिकारी का तो यहाँ तक कहना है कि दिमाग और शरीर में पल रही हर छोटी से छोटी बीमारी का पता हाथ के अध्ययन से लगाया जा सकता है। क्योंकि शरीर और दिमाग में जो कुछ भी चल रहा होता है उसकी प्रतिक्रिया सीधे तौर पर हाथ पर दिखाई देती है। शिकागो और न्यूयार्क में इस समय तो हाथ के अध्ययन को लेकर गहन शोध तक चल रहा है। इस क्षेत...

नव वर्ष मनाने के निराले ढ़ग

चित्र
प्राचीन समय में बड़े-बड़े साम्राज्यों में भी नववर्ष के आगमन का समारोह विशाल पैमाने पर मनाया जाता था। नए वर्ष के दिन पुराने वैर-भाव भुलाने और नई मित्रता स्थापित करने की परम्परा भी पुरानी है। नए वर्ष के आगमन पर आंनद तथा उल्लास के साथ बंधाई देना बहुत लोकप्रिय और पुराना रिवाज रहा है। इसके मनाने के तौर तरीके तमाम जगहों पर तमाम तरह के हैं।  यह ध्वनि सबसे अधिक गरिमामय तथा मर्मस्पर्शा होती है नए वर्ष की पूर्व संध्या के समय घंटियां बजाने की प्रथा का आरम्भ इंग्लैंड में काफी पहले हो गया था। रिवाज यह था कि बारह बजे से थोड़ा पहले उपर से किसी चीज से ढ़की हुई घंटियां बजाई जाती थी और ठीक बारह बजे उनका आवरण हटाकर उन्हें जोर-जोर बजने दिया जाता था, यह इस बात का सूचक था कि बीता हुआ वर्ष कमजोर और दुर्बल था जबकि नया वर्ष मजबूत और शक्तिशाली होगा। चार्ल्स लैब ने लिखा है “घंटियों की सब प्रकार की ध्वनियों में से यह ध्वनि सबसे अधिक गरिमामय तथा मर्मस्पर्शा होती है जो बीते हुए वर्ष को भगाती है।” वह बीते हुए वर्ष के लिए मृत्यु की सूचक तथा नए वर्ष के स्वागत की सूचक होती थी। नए वर्ष की पूर्व संध्या पर घंटियों को ...

युवाओं के लिए नई ऊर्जा का स्रोत बनता अध्यात्म

चित्र
आजकल तो कम से कम समय में बहुत कुछ हासिल करने और सुख के भौतिक संसाधन जुटाने का दबाव आधुनिक युवाओं के मन-मष्तिष्क पर घर कर गया है। इस मानसिकता ने लोगों को तनाव में जीने की आदत सी डाल दी है। आधुनिक युवा वर्ग इसी आत्मघाती आदत के कारण अपने कार्यस्थल और घर दोनों ही जगह हमेशा तनावग्रस्त रहते हैं। परन्तु इस आदत का निदान भी कुछ लोगों ने खोज निकाला है। वह है जेन मेडिटेशन , ताओवाद और भारतीय ध्यान या बौद्व ध्यान। अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद भी लोग समय निकाल कर अध्यात्म का अभ्यास करने में कहीं आनाकानी नहीं कर रहे हैं। अध्यात्म के अभ्यास में धर्म कहीं आड़े नहीं आता। इसी कारण इन दार्शनिक अभ्यासों और गतिविधियों में सभी धर्मों के लोग यहां तक कि चर्च के पादरी भी शामिल हो रहे हैं।   तनावरहित रहकर आनंद की स्थिति में खुद को पाना ही अध्यात्म है न्यूरो सांइस में चिंताग्रस्तता , अवसाद , व तनाव से ग्रसित मरीजों पर बौद्ध माइंडफुलनेस तकनीक को आजमाया जाता है। यह तकनीक “ ध्यानावस्थित तदते न मनसा ” या यों कहें वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयोग किये जाते है। इसके नतीजे बेहद उत्साहवर्धक रहे हैं। परंपरागत...

सफेद मूसली की खेती करने की वैज्ञानिक तकनीक क्या है?

चित्र
सफेद मूसली को मानव मात्र के लिये प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपकार कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अनेंको आयुर्वेदिक, एलेापैथिक तथा यूनानी दवाईयों के निर्माण हेतु प्रयुक्त होले वाली इस दिव्य जड़ी-बूटी की दुनिया भर में वार्षिक उपलव्धता लगभग 5000 टन है जबकि इसकी मांग लगभग 35000 टन प्रतिवर्ष आंकी गई है। अब इसकी विधिवत खेती करने की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है। सौभाग्यवश इसकी खेती करने की में किए गए प्रयोग न केवल अत्यधिक सफल रहे हैं बल्कि व्यावसायिक रूप से इसकी खेती अविश्वसनीय व  लाभकारी भी पाई गई है। अलग-अलग जगहों पर मूसली के अलग-अलग नाम सफेद मूसली एक कंदयुक्त पौधा होता है जिसकी अधिकतम ऊचाई डे़ढ फीट होती है तथा इसकी दिल जड़े़ (जिन्हें कंद अथवा फिंगर्स कहा जाता है) जमीन में अधिकतम 10 इ्रंच तक नीचे जाती है। क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम के नाम से जाना जाता है परंतु इंडियन मलेरिया मेडिका में इसका नाम क्लोरोफाइटम अरूंड़ीयिम दर्शाया गया है। गुजराती भाषा में यह पौधा धेाली मूसली के नाम से, उत्तर पद्रेश में खैरूवा के नाम से, मराठी में सुफेद अथवा सफेद मूसली के नाम से, मलयालम में शेदेवेली के न...