युवाओं के लिए नई ऊर्जा का स्रोत बनता अध्यात्म
आजकल तो कम से कम समय में बहुत कुछ हासिल करने और सुख के भौतिक संसाधन जुटाने का दबाव आधुनिक युवाओं के मन-मष्तिष्क पर घर कर गया है। इस मानसिकता ने लोगों को तनाव में जीने की आदत सी डाल दी है। आधुनिक युवा वर्ग इसी आत्मघाती आदत के कारण अपने कार्यस्थल और घर दोनों ही जगह हमेशा तनावग्रस्त रहते हैं। परन्तु इस आदत का निदान भी कुछ लोगों ने खोज निकाला है। वह है जेन मेडिटेशन, ताओवाद और भारतीय ध्यान या बौद्व ध्यान। अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद भी लोग समय निकाल कर अध्यात्म का अभ्यास करने में कहीं आनाकानी नहीं कर रहे हैं। अध्यात्म के अभ्यास में धर्म कहीं आड़े नहीं आता। इसी कारण इन दार्शनिक अभ्यासों और गतिविधियों में सभी धर्मों के लोग यहां तक कि चर्च के पादरी भी शामिल हो रहे हैं।
तनावरहित रहकर आनंद की स्थिति में खुद को पाना ही अध्यात्म है
न्यूरो
सांइस में चिंताग्रस्तता, अवसाद, व तनाव से ग्रसित
मरीजों पर बौद्ध माइंडफुलनेस तकनीक को आजमाया जाता है। यह तकनीक “ध्यानावस्थित तदते न मनसा” या यों कहें वर्तमान पर
ध्यान केंद्रित करने के प्रयोग किये जाते है। इसके नतीजे बेहद उत्साहवर्धक रहे
हैं। परंपरागत चिकित्सा प्रणाली के मुकाबले यह तकनीक कहीं अधिक प्रभावशाली दिखती
है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि ध्यान एक साधना है। प्रसन्नता की तरह
अध्यात्म भी एक मनोदशा है, जहां व्यक्ति पीड़ा, तनावरहित रहकर आनंदावस्था में स्वयं को पाता है। अध्यात्म एक निजी अनुभव
है। मानवीय माइंड और ब्रेन की अध्यात्म चिंतन में अहम भूमिका होती है। जो व्यक्ति
माता-पिता से विरासत में मिले दो बड़े गुणसूत्रों से मिल जाता है। वास्तव में यह
दोनों मिलकर व्यक्ति के भौतिक, आध्यात्मिक प्रोफाइल को आकार
देते हैं।
आध्यात्मिक मनोविज्ञान पर भी अब अध्ययन करने का दौर चल पड़ा है
लोग
अनुभव करने लगे हैं कि अध्यात्म की शरण में सुख प्राप्त होता है। कई लोग हैं, जो सदमों से संत्रस्त मानसिकता से पिंड छुड़ाना चाहते हैं। जीवन में आए दिन
कोई न कोई हादसा उन्हें आहत, उद्धेलित किए देता है। वे अक्सर
इस सवाल से दो-चार होने को मजबूर है। भौतिकवाद और सांसारिकता की ओर तेज दौड़ और भी
अधिक निराशा लाती है। तीस वर्ष तक की आयु आते-आते वे जिंदगी के गहरे अर्थ तक
पहुंचने को बेताब देखे जा सकते है। आज की तनावपूर्ण जिंदगी में गीता का उपदेश
संतोष प्रदान करता है। धर्म के कर्मकांड और आडंबर से उकताए कई कारोबारी आध्यात्मिक
कार्यशाला की ओर रूख करने लगे हैं। आखिर कुछ तो बात है इसमें ऐसी कि लोग स्वयं ही
इस ओर खिंचे चले आते हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने
अच्छे खासे ओहदे को अलविदा कह, अध्यात्म को ही अपना साध्य
बनाते देखा जा सकता है। मनन, चिंतन, आत्म-परमात्मा
के अध्ययन के इस अभूतपूर्व उभार के वैज्ञानिक पक्ष की अनदेखी नहीं की जा सकती।
वेदों, उपनिषदों, योगसूत्रों, भगवतगीता, जेन, सूफी परंपरा से
जुड़े आध्यात्मिक मनोविज्ञान पर भी अब तेजी से अध्ययन होने लगा है।
इंदिरा गाधी, स्टीव जॉब्स व जॉर्ज हैरिसन जैसे कई बड़े नाम हैं
अध्यात्म
की दुनिया में भारत को विश्वगुरू के रुप में जाना जाता है। अध्यात्म का प्रभाव कुछ
ऐसा है कि दुनिया भर के लोग आत्म शांति की खोज में स्वयं ही इस और खिंचे चले आते
हैं। कम्प्यूटर व मोबाइल बनाने वाली जानीमानी कंपनी एप्पल के सह-संस्थापक रहे स्टीव
जॉब्स जब अध्यात्म की तलाश में 1974 में भारत की ओर अपना रुख
किया था। स्टीव जॉब्स भारत में उत्तराखड़ के नैनीताल के बाबा नीम करौली के कैंची
आश्रम में अपना आध्यात्मिक सफर तय किया था। आपातकाल के दौरान मानसिक तनाव के कारण
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी आध्यात्मिक गुरू जे. कृष्णमूर्ति के पास गई
थीं। आध्यात्मिकता का ही तकाजा था कि बीटल बादशाह जॉर्ज हैरिसन जो कि महर्षि महेश
योगी के श्रृषिकेश आश्रम में रहे, ताकि मेडिटेशन के जरिए
अपनी आध्यात्मिक अनुभूति को बलवती कर सकें। यों तो बहुचर्चित बीट पॉयट ऐलेन
गिंसबर्ग को कमोबेश इसी के आकर्षण के चलते भारत में भटकते देखा गया। उस वक्त की
पूरी की पूरी हिप्पी पीढ़ी सुख की तलाश में गोवा, पुष्कर जैसी
जगहों पर धुनी रमाती रही।
जेन, गीत व ताओवाद की तरफ बढ़ते लगाव को देखा जा सकता है
यदि यह
कहें कि आधुनिकता के इस नये दौर में आध्यात्मिकता आज फिर से अपने उभार पर है तो
इसमें कोई अचरज की बात नहीं। नई पीढ़ी हो या पुरानी, महानगरों
में हर कोई इसकी ओर खिंचा चला आता है। पुस्तक मेलों में आध्यात्मिक विभागों में
जिज्ञासु लोगों का जमघट लगना आम बात हो गई है। क्या लोगों में वास्तविक खुशहाली की
ख्वाहिश उन्हें आध्यात्मिक गुरूओं की ओर बढ़ने को मजबूर किए देती है। अब तो ऐसे कई
पाठ्यक्रम भी अस्तित्व में आ गए हैं, जो विद्यार्थियों को
मनोवैज्ञानिक सुकून देते हैं। आज शहरी युवाओं को जेन, गीत,
ताओवाद में खुशहाली की खोज में तत्पर देखा जा सकता है। अब कई ऐसी
संस्थाएं अपनी करिश्माई कार्यशालाएं आयोजित कर रही हैं, जिनमें
शरीक होकर हर उम्र के लोग अपनी आध्यात्मिक क्षुधा शांत कर सकते हैं। ऐसे कई समूह
अस्तित्व में आ गए हैं, जिनसे जुड़कर नीतिशास्त्र व अध्यात्म
पर खुलकर चर्चा की जा सके। इन समूहों में हर उम्र के लोग शामिल रहते हैं। जिसका
उद्देश्य धर्म ग्रंथों का अध्ययन, चिंतन व मनन करने के
साथ-साथ ध्यान व योग को बढ़ावा देने का होता है।
आजकल का युवा आध्यात्मिकता का अनुभव स्वयं कर रहा है।
अब वह
जमाना लद गया जब लोग आध्यात्मिकता के लिए रिटायरमेंट होने की प्रतीक्षा करते थे।
अब तो कई ऐसी धर्मिक संस्थाएं आए दिन कहीं न कहीं कोई कार्यशालाएं व संगोष्ठियां
आयोजित करती ही रहती हैं। जिसका हिस्सा बनकर हर उम्र के लोग आध्यात्मिक उर्जा का
अनुभव कर सकते हैं। ऐसी कई संस्थाएं व दर्शन और ध्यान विधियां अस्तित्व में आ गई
हैं जिनसे जुड़कर युवा वर्ग, कर्मचारीगण और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुख्य
कर्ताधर्ता लोग आध्यात्मिकता का साक्षात अनुभव कर रहे हैं। इसके साथ-साथ इस
भौतिक संसार में अनेक उपलब्धियां व सफलता हासिल कर रहे हैं। #
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