अगस्त क्रांति : जिसने हिला दी अंग्रेजी हुकूमत की जड़े
भारत के लम्बे स्वतंत्रता आंदोलन में अगस्त क्रांति ऐसा निर्णायक दौर था जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद को स्पष्ट संकेत दिया कि उपनिवेशवाद का युग अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। अगस्त क्रांति का सूत्रपात महात्मा गाँधी द्वारा “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आन्दोलन के साथ हुआ। देखते ही देखते यह एक जन आंदोलन बन गया जिसमें कई नए-नए शक्तिपुंज उभर कर सामने आए। महात्मा गाँधी समेत कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं को जेल में डालकर अंग्रेजों ने अनजाने में ही नई पीढ़ी के हाथ में स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर सौप दी थी। इस युवा पीढ़ी के इरादे व तेवर और भी अधिक आक्रामक थे। जेल में कैद नेताओं की अपील पर नवयुवक और भी उत्साहित हो चले थे।
आंदोलन के नेतृत्व में युवा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हो गई
अगस्त क्रांति के दौरान जो महत्वपूर्ण युवा नेता उभरकर सामने आए उनमें जय प्रकाश नारायण, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन तथा अरुणा आसिफ अली थे। इनको वैचारिक और सैद्धांतिक प्रेरणा देने वालों में आचार्य नरेन्द्र देव और डॉ.सम्पूर्णानंद प्रमुख थे। यह युवा नेतागण और उनके प्रेरणा स्त्रोत रहे कांग्रेसी बुजुर्ग नेताओं का पूरा सम्मान करते थे, पर उनके सामने आने और अगस्त क्रांति का नेतृत्व करने के कारण स्वाधीनता संग्राम आंदोलन के नेतृत्व में युवा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हो गई तथा आंदोलन का स्वरूप भी बदला। जैसा स्वाभाविक था नेहरू इस वर्ग के लिए आकर्षण का केन्द्र थे। नेहरू स्वयं महात्मा गाँधी का बहुत आदर करते थे, लेकिन इस नए युवा वर्ग के समर्थन के साथ वर्ष 1942 के बाद देश में सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक नेता नेहरू ही थे, न की महात्मा गाँधी थे, न ही सरदार पटेल थे और न ही मौलाना आजाद थे।
भारत के विभाजन में “समाजवादी शोर” का भी हाथ था
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में समतावादी और समाजवादी प्रशासन की परिकल्पना अगस्त क्रांति का ही परिणाम थी। प्रमाणित पुस्तक “एशियन ड्रामा” के लेखक गुन्नार मिर्डल के अनुसार भारत के विभाजन की प्रक्रिया तेज करने में “समाजवादी शोर” का भी हाथ था। मुस्लिम सामंतों को यह चिंता सताने लगी, कि यदि भारत में समाजवाद आ गया तो फिर उनका क्या होगा। इसलिए उन्होंने पृथक मुस्लिम राज्य की मांग को बलदिया, जिसके परिणामस्वरुप पाकिस्तान बनने का रास्ता सुगम हो गया।
अंग्रेजी शासकों की नींद उड़ गयी
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाजवाद एक खतरा था। इसलिए उन्होंने भी मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया। अगस्त क्रांति आंदोलन के दौरान मुंबई में नौसेना ने भी विद्रोह किया जिससे अंग्रेजी शासकों की नींद उड़ गयी। यूरोप में अपने देश में द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका झेलते हुए अंग्रेजों की समझ में आ गया कि अब भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दिन ढ़ल गए हैं। #
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