आखिर क्या है हिग्स बोसॉन?
हिग्स
बोसॉन या ईश्वरीय कण ऐसा आधारभूत कण है जो एक दृष्टि से सूक्ष्म से लेकर सबसे बड़ी
संरचना के अस्तित्व का कारण है जिससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। प्रयोगशाला में इस
कण को देखने के बाद इसकी तुलना धर्म से की जाने लगी। तब से धर्म बनाम विज्ञान संबंधी
तमाम तुलनाएं और कहानियां कही जाने लगी। कुछ लोग इसको विज्ञान की विजय के रूप में
देख रहे हैं, वहीं कुछ
लोग इसको धर्म की विजय कह रहे है। कुछ लोग कह रहे हैं कि कुछ नया उद्घटित नहीं हुआ
है क्योंकि कई प्राचीन धर्म पहले से ही ऐसा मानते हैं कि कण-कण में ब्रह्म व्याप्त
है। सो, यह अविष्कार एक तरीके से उन्हीं मान्यताओं की पुष्टि
है।
न ही ईश्वर के अस्तित्व को खारिज करती है और न ही उसका समर्थन करती है
दिल्ली विश्वविद्यालय भौतिक विज्ञान के सहायक प्रो. मो. नईमुद्दीन का कहना है कि ‘‘मैं एक वैज्ञानिक होने के नाते और इस खोज से जुड़े होने के कारण हिग्स बोसॉन की धर्म या धार्मिक विश्वास से तुलना का कोई औचित्य नहीं समझता। मैं यहां यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हिग्स बोसॉन जैसे कण की खोज न ही ईश्वर के अस्तित्व को खारिज करती है और न ही उसका कोई समर्थन करती है।’’ आगे यह कहते हैं कि ‘‘यह सही है कि ईश्वर के गुणों और हिग्स बोसॉन के बीच में समानताएं हैं लेकिन हमको इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए। साथ ही इन दोनों का घालमेल करने की जरूरत भी नहीं है।”
क्या हिग्स बोसॉन भार प्रदान करता है, जिसके चलते ब्रह्मांड अस्तित्व में आया
“मान्यता है कि ईश्वर कण-कण में और सर्वत्र-व्याप्त है। यही बात हिग्स फील्ड के बारे में कही जा रही है। वैज्ञानिकों का भी विश्वास है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में हिग्स फील्ड व्याप्त है। जिस तरह ईश्वर कई रूपों में अवतरित होते हैं उसी तरह हिग्स फील्ड का अवतार हिग्स बोसॉन है। भले ही इस तरह की कई समानताएं दोनों के बीच दिखती हों लेकिन इसके बावजूद हिग्स बोसॉन का अस्तित्व धार्मिक मान्यताओं एवं वैधता की न तो पुष्टि करता है और न ही खारिज करता है। यदि हिग्स बोसॉन (ईश्वरीय कण) का अस्तित्व नहीं भी होता तब भी कण-कण में भगवान संबंधी धार्मिक विश्वास पहले ही करह बरकरार रहता। जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि हिग्स बोसॉन कई आधारभूत कणों में से ही एक है। इसका अन्य कणें की अपेक्षा महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इस कण और इससे जुड़ा फील्ड (हिग्स फील्ड) बाकी सभी को भार प्रदान करता है, जिसके चलते ब्रह्मांड का अस्तित्व संभव हो सका। ठीक इसीतरह मैं यह भी कह सकता हूं कि इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन भी हिग्स बोसॉन की तरह ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके अभाव में भी जीवन और संरचनाएं संभव नहीं हो पातीं।’’इस प्रकार संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हिग्स बोसॉन विशेष रूप से कण-कण में व्याप्त भगवान संबंधी धार्मिक विश्वास को पुष्ट या खारिज नहीं करते। इसके साथ ही यह धर्म पर विजय भी नहीं है क्योंकि सवाल उठता है कि यदि हिग्स ही सभी प्रकार की संरचनाओं और जीवन की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार है तो इससे भी बड़ा प्रश्न यह पूछा जा सकता है कि हिग्स बोसॉन (ईश्वरीय कण) को किसने बनाया?
हिग्स बोसॉन ही वह तत्व है जो संसार का आदि निर्माता अथवा मूल तत्व
है।
परमाणु वैज्ञानिक प्रो. यशपाल का कथन है ‘‘भारतीय दर्शन में ‘कण कण में ब्रह्म" की मान्यता हजारों वर्षों से रही है, लेकिन अभी तक इसकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो सकी थी, लेकिन गॉड पार्टिकल की खोज से विज्ञान के इस मूल सवाल के साथ ही दर्शन की यह रहस्यमयी गुत्थी भी लगभग सुलझती नजर आ रही है। महाविस्फोट (बिग बैंग) के बाद ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। इस दौरान एक ही तत्व का रंग या प्रभाव बाकी सभी पर चढ़ गया। ये और कुछ नहीं संभवतः सूक्ष्म बोसॉन कण ही थे। इन्हीं बोसॉन कणों के कारण सभी में भार आया जो परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया करके बाद में विभिन्न रूपों में प्रकाशमान अथवा कहें कि अस्तित्वमान हुए। अब यदि दर्शन की शब्दावली पढ़ें तो वहां लिखा गया है वह एक (ईश्वर या ईश्वरीय कण) ही अनेक (संसार की विभिन्न चीजों) में परिवर्तित हुआ। कह सकते हैं यही वह तत्व है जो संसार का आदि निर्माता अथवा मूल तत्व है। इस तरह स्पष्ट है कि यदि बोसॉन कणों की वास्तव में खोज कर ली गई है, तो अभी तक सबसे बड़ी गुत्थी सुलझने की ओर है, और इससे विज्ञान के कई अंगों के साथ-साथ दर्शन का भी समाहितीकरण हो जाएगा। इस खोज का असल महत्व यह है कि ब्रह्मांड का अभी तक 90 प्रतिशत अज्ञात हिस्सा जिसे हम डार्क मैटर कहते हैं, ताके जानने में भी मदद मिलेगी। इस तरह ब्रह्मांड के और रहस्यों से भी पर्दा उठेगा। यह एक ऐसी खोज है जिससे आने वाले समय में विज्ञान, ब्रह्मांड, दर्शन और मानव जीवन के बारे में हमारी मूल धारणाएं काफी कुछ बदल जाएंगी और तकनीक के क्षेत्र में मानव एक बड़ी छलांग लगाने में समर्थ हो सकेगा।’’
हिग्स बोसॉन एक सेकेंड के लाखवें हिस्से के लाखवें से लाखवें समय
के लिए भी नहीं दिखता।
हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल की खोज होने के बाद ईश्वरीय कण मिले के दावों पर इस सिद्धांत के प्रणेता और भौतिकी वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने जेनेवा में पत्रकारों के समक्ष स्पष्टीकरण दिया है। हिग्स ने कहा कि हिग्स बोसॉन कण सिर्फ यह बताता है कि ग्रहों और तारों को बनाने वाले सूक्ष्म कणों को घनत्व और विशाल आकार कैसे मिलता है। इस खोज से प्रकाश की गति से ब्रह्मांड में विचरण करने जैसी स्थिति नहीं होगी। लंदन के समाचार पत्र टेलीग्राफ को दिए इंटरव्यू में पीटर हिग्स ने कहा कि गॉड पार्टिकल किस लिए हैं उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है। प्रयोग के दौरान यह बहुत ही कम समय के लिए दृष्टिगोचर हुआ था। ये कण एक सेकेंड के लाखवें हिस्से के लाखवें से लाखवें समय के लिए भी नहीं दिखा था। इसलिए ये बता पाना मुश्किल है कि इस प्रयोग की किसी कारगर काम में कैसे इस्तेमाल करना है। उन्होंने कहा कि इस सूक्ष्म कण को आगे चलकर अगर एक सेकेंड के लाखवें हिस्से की अवधि के लिए देखा जा सकता तो इसका इस्तेमाल चिकित्सकीय कार्यों में किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि जो कण टिकता ही इतने कम समय के लिए हो उससे कैसे किसी कार्य को अंजाम दे सकते हैं, इस बारे में उन्हें कोई अंदाजा नहीं है।
ब्रह्मांड रहस्यमय है और उससे भी कहीं ज्यादा रहस्यमय है इसके
निर्माण की गाथा।
वर्ष 1964 में एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से ही पीटर हिंग्स ने बोसॉन के अस्तित्व पर अपने सिद्वांत को प्रकाशित कराया था। इसी यूनिवर्सिटी में आए हिग्स ने यहां कहा कि बोसॉन का नाम गॉड पार्टिकल किसी ईश्वरीय शक्ति के संबंध से नहीं पड़ा। चूंकि इस कण का अस्तित्व बहुत कम समय के लिए ही होता है, इसलिए उनके एक सहयोगी वैज्ञानिक ने इसे मजाक में गॉड-डैम पार्टिकल कह कर पुकारा था। तभी से इसका नाम गॉड पार्टिकल पड़ा। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से एक भौतिकी की खोज है। फिर भी वैज्ञानिक मामलों विशेषज्ञ शुकदेव प्रसाद का कहना है, ‘‘यह ब्रह्मांड रहस्यमय है और उससे भी कहीं ज्यादा रहस्यमय है इसके निर्माण की गाथा। सृष्टि के आरंभ में, इस महा आकाश में जो कुछ भी गोचर-अगोचर है, वह सारा का सारा द्रव्य एक मटर के दाने सरीखे अति सघन पिंड में समाहित था जिसमें आज से करीब 14 अरब वर्ष पूर्व महा विस्फोट हुआ और उसी के बाद ब्रह्मांड निर्मित हुआ। यद्यपि शक्तिशाली दूरदर्शियों की मदद से इसके कई रहस्यों का अनावरण हो चुका है लेकिन यह अब भी जानना बाकी है कि आखिर उस महाविस्फोट के ‘पहले’ पल के बाद क्या हुआ? सवाल कई हैं। जैसे ग्रह-नक्षत्र-तारों और मंदाकिनियों का निमार्ण कैसे हुआ?
पीटर हिग्स के अनुसार इन्हीं कणों के कारण अन्य कणों में
द्रव्यमान का सृजन हुआ।
‘‘ऐसे अनेक प्रश्नों के समाधन के लिए जेनेवा के पास (स्विट्जरलैंड-फ्रांस की सीमा पर) लार्ड हेडून कोलाइडर नामक महामशीन लगाई गई। यूरोपियन आर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) ने अप्रैल, 1998 में इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर कार्य आरंभ कर दिया था। इस प्रयोग से प्रोटॉनों की महा भिड़ंत कराकर आशा की गई कि इससे कुछ-कुछ वैसी ही स्थितियां (बिग बैंग) उत्पन्न होंगी जो ब्रह्मांड के उद्भव के समय थीं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस महाप्रयोग से कई मूलभूत कण निकल सकते हैं जिनमें से एक ‘हिग्स बोसॉन’ हो सकता है। इस कण के बारे में पीटर हिग्स की मान्यता है कि इन्हीं कणों के कारण अन्य कणों में द्रव्यमान का सृजन हुआ और इसी के कारण अलग-अलग चीजों का द्रव्यमान एक दूसरे से अलग हे, यद्यपि सभी एक ही द्रव्य से उद्भूत हुए हैं। गॉड पार्टिकल वस्तुतः एक काल्पनिक कण है जिसके बारे में वैज्ञानिकों की धरणा है कि आरंभिक द्रव्य इसी के कारण इस लायक हो सका कि जिससे ब्रह्मांड की संरचना हुई यद्यपि इन कणों से जुड़ी संकल्पना बहुत पहले ही विकसित हो चुकी थी लेकिन इनकी निष्पत्तियां आज तक अज्ञेय थीं। प्रयोगशालीय स्तर पर इनका सत्यापन नहीं हो पाया था और तभी से ये अनसुलझी पहेली ही है।’’
ईश्वर की संकल्पना अत्यंत विराट है और सारे मानवीय अभिज्ञान और साफल्य
अत्यंत सूक्ष्म।
‘‘ईश्वरीय
गणों के संदर्भ में सर्न के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन कणों को हमने खोज तो
लिया है पर अभी प्रयोग के आरंभिक स्तर पर हम उनकी मौजूदगी का कोई ठोस प्रमाण नहीं
दे सकते हैं। सर्न की शोध टीमों का निष्कर्ष है कि स्पष्ट रूप से अभी भी नहीं कहा जा सकता है कि नवीन कण गॉड पार्टिकल ही हैं लेकिन इतना
जरूर है कि वह उसके समानुरूप अवश्य है। इस कण का द्रव्यमान 125.3 जीईवी दर्ज किया गया है जो पूर्व के अनुमानों की पुष्टि करता है।’’ फिर भी मूल प्रश्न अनुत्तरित ही है। यदि ईश्वरीय कणों से हम रूबरू हो भी
जाते हैं तो भी यह जानना बाकी रहेगा कि आखिर इन कणों का निर्माण किसने किया और इस
जगत का नियंता कौन है? जैसा कि कृष्ण ने उद्घोष किया था-
‘एको अहम् द्वितीयोनास्ति’ तो अभी भी उस
‘एक’ की खोज बाकी है। ईश्वर की संकल्पना
अत्यंत विराट है और सारे मानवीय अभिज्ञान और साफल्य अत्यंत सूक्ष्म। कृष्ण ही गीता
में कहते हैं कि मुझे जानने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए और वह विज्ञान की सीमा से
परे है। बकौल शायर-‘जो उलझी थी कभी आदम के हाथें, वह गुत्थी आज भी सुलझा रहा हूं।#
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