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फ़रवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आखिर सांपों को कितना जानते हैं हम

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हमारे लोक-कथाओं और दंतकथाओं में सांपों का चित्रण बड़े ही भयानक व डरावने रुप में किया गया है जिसके कारण लोग सांप को देखते ही एकदम अचानक से भयभीत होना स्वाभाविक है। ऐसा अंधविश्वास है कि जब कोई अजगर दिखाई देता है तो इंसान जस का तस , खड़ा का खड़ा ही रह जाता है। इसके अलावा एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि सांप बदला लेने की भावना रखते हैं जो उन्हें किसी तरह की हानि पहुंचाते हैं या फिर जान से मारने प्रयास करते हैं। लेकिन ये सब दंतकथाये लोगों की कल्पना मात्र हैं। सांप आमतौर पर संकोची व कायर मिजाजी जीव होते हैं यदि हम व्यावहारिक रुप से देखे तों सांप वास्तव में भाव से संकोची व कायर मिजाजी जीव है। कहीं से भी जरा सी आहट पाते ही वह अपने आपको बचाव की मुद्रा में कर लेता है और मौका मिलने पर वहां से तुरंत भागने के लिए आतुर रहता है। वैसे तो दुनियाभर में पाए जाने तमाम तरह के सांपों में कुछ ही ऐसे सांप होते हैं जो प्राणघातक व विषैले होते हैं , बांकि अन्य सांप अधिकांशतः विषहीन होते हैं। आमतौर पर सांप का स्वभाव आक्रामक नहीं होता है। सबसे पहले वह अपना बचाव करने की कोशिश करता है और उसके बाद ही वह अंतिम विकल...

मौसम का हमारी सेहत पर प्रभाव?

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‘ ‘ चले पुरवइया तो उखड़े जोड़ ’’ कहते हुए पहलवानों को हम प्रायः सुनते हैं। वर्षा ऋतु में जब पुरवइया चलती है तो उनकी पुरानी चोटें उखड़ जाती है तथा उनमें दर्द होने लगता है , यह दर्द बरसात भर बना रहता है , तथा वर्षा समाप्ति पर समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार से होली के बाद का एक माह खांसी तथा तपेदिक के रोगियों के लिए अत्यन्त कष्टदायी होता है। इसी प्रकार यह सर्वज्ञात तथ्य है कि अधिक शीत , ग्रीष्म या वर्षा में आलस्य आता है तथा सामान्य कार्य भी दूभर हो जाता है। इसके विरुद्ध समशीतोष्ण ऋतु में कार्य कुशलता बढ़ जाती है। ऋतुओं   का यह प्रभाव केवल अपने देश में ही नहीं पाया जाता बल्कि संसार के प्रत्येक राष्ट्र इससे प्रभावित है। बदलते मौसम से बदलते सेहत का कारण जर्मनी में जब पर्वत से सूखी तथा गर्म हवा चलती है तो निकटवर्ती प्रदेश में विचित्र स्थिति व्याप्त हो जाती है। आपसी झगड़े , मार्ग दुर्घटनायें मानसिक विकार , हृदय रोग बढ़ जाते हैं। किन्तु सामान्य मौसम के आते ही ये परेशानी दूर जो जाती है। इस विचित्र स्थिति को कोहन रोग के नाम से जाना जाता है। कुछ काल पहले तक तो वैज्ञानिक इनको केवल मनावैज्ञानिक रोग...

अध्यात्म और योगा के प्रति विश्वभर में बढ़ती रूचि

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ज्यों-ज्यों विश्व में भैतिकवाद अपना शिकंजा जमाता जा रहा है त्यों-त्यों लोगों की शांति भंग होती चली जा रही है। इसीलिए विदेशों में भारतीय योग विद्या के प्रति सहज में ही आकषर्ण आरंभ हो गया है। गत कई वर्षों से जो योग प्रचार विश्व के विभिन्न देशों में हुआ है उसके सुखद परिणम निकलने लगे हैं। जिनकी कभी आशा नहीं की जा सकती थी। इन दिनों अनेक भारतीय योग द्वारा चलाये जाने वाले शिक्षा केन्द्रों की संख्या हजारों में पहुंच गई है। इनके विस्तृत उदाहरण कुछ इस प्रकार से दिए जा रहे हैं। विदेशों में योगा का प्रचार-प्रसार संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वामी योगानन्द का ‘ सैल्फ रियलाइजेशन फैलाशिप ’ एक लम्बे समय से कार्य कर रहा है। उनका यह फैलोशिप अमेरिका के लांस ऐेजिल्स के समीप माउण्ट वाशिंगटन पर इस कार्य का प्रमुख केन्द्र है और शाखाएं अमेरिका के अन्य छोटे बड़े नगरों में फैली हुई है। विश्व के प्रसिद्ध चलचित्र स्थल हॉलीवुड के अभिनेताओं ने जब से योग साधना में दिलचस्पी लेनी शुरू की है , तब से तो इस ‘ सैल्फ रियलाइजेशन मिशन के प्रति जनता में और भी अधिक उत्साह बढ़ गया है। स्वामी योगानन्द की ‘ साइन्स ऑफ लिजन ’, सासे...

कैसे बनाएं अपने बच्चों की जिंदगी बेहतर?

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आखिर कौन मां-बाप नहीं चाहते कि उनका बच्चा बड़ा होकर सुयोग्य बने तथा सुखी और सम्पन्न जीवन बसर करे। किन्तु कितने मां-बाप यह समझते है कि बच्चे की सफलता उनको बचपन में मिली शिक्षा-दीक्षा पर ही निर्भर करती है। कितने मां-बाप यह जानते है कि बच्चों को सुख समृद्धि में घर का अच्छा वातावरण कितना सहयोग देता हैं। “ बालक वहीं सीखता है जो आप करते हैं ” प्रसिद्ध बाल मनोवैज्ञानिक आर्थर डिंगले के अनुसार “ बालक वहीं सीखता है जो आप करते हैं , वह नहीं जो आप कहते हैं ” । बच्चे सदा माता पिता की तरह व्यवहार करने की चेष्टा करते हैं। उन्हीं के अनुसार बोलते हैं , खाते-पीते हैं तथा वस्त्र धारण करते हैं। बालक के अबोध मस्तिष्क का आदर्श उसके अपने माता पिता तथा परिवार के सदस्य ही होते हैं। अतः मां-बाप को चाहिए कि वह बच्चों के सम्मुख ऐसे काम न करे जिनको ठीक न समझते हो। समय पर काम करना , सवेरे उठना , साफ रहना , मीठी बोली बोलना , दूसरे की मदद करना , यह सब आदतें मां-बाप द्वारा करने पर अनुकरण प्रकृति के सहारे आसानी से बच्चों में यह डलवाई जा सकती है। स्वयं सिगरेट पीने वाला पिता यदि चाहे कि बच्चा सिगरेट से दूर रहे तो यह ...

कैसे जान लेते हैं न सिर्फ मर्ज को, बल्कि मरीज को भी?

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यदि प्रतिभा के साथ-साथ उसमें लंबे समय का अनुभव जुड़ जाए तो एक प्रकार की विशेष अनुभूति का उदय होता है। जिसे अंतर्ज्ञान कहते हैं। अनेक प्रतिभावान व्यक्तियों में यह विशेषता पाई जाती है। ऐसी विशेष क्षमता वाले लोग असंभव कार्य को संभव कर दिखाने हुनर रखते हैं। इस अनुभूति के बल पर प्रतिभा-सम्पन्न चिकित्सक बहुत थोड़े समय में ही बड़े निपुण ढंग से किसी रोगी के रोग का पता लेते  हैं। आरंभ में वे रोग के संबंध में कुछ न समझ पाए एक दिन अस्पताल के निचले माले में स्थित एमरजेन्सी वार्ड में किसी कठिन रोग से ग्रसित एक शिशु को लाया गया। वार्ड के डॉक्टर ने उसकी जांच की , लेकिन आरंभ में वे रोग के संबंध में कुछ न समझ पाए। कफ , तेज ज्वर , और गले की पीड़ा के कारण उस शिशु को बड़ा कष्ट हो रहा था। अंत में रोगी के मुंह को खोलने पर छोटी जीभ के चारों ओर सफेद दाग देखकर समझ गए कि उसे डिप्थीरिया हुआ था। एंम्बुलेंस बाहर ही खड़ी थी। डॉक्टर ने रोगी को संक्रामक रोगों के वार्ड में भिजवा दिया। उसके बाद सुप्रीटेन्ड ड़ॉक्टर रिमारिज रिपोर्ट करने के लिए डॉक्टर अमित के कमरे की ओर दौड़े। मुझे वह गंध डिप्थीरिया की लगी डॉक्टर अम...

एंजाइम प्रौद्योगिकी का भविष्य?

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एंजाइम प्रोटीन के ऐसे अणु है , जो अनेक प्राकृतिक प्रक्रियाओं में जैविक उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। ये अनेक रायायनिक क्रियाओं को तेज करके , उन्हें कम तापमान पर भी संचालित कर सकते है और इस तरह ऊर्जा की काफी बचत हो सकती है। हमारे दैनिक जीवन में एंजाइम प्रौद्योगिकी  के विकास के प्रभाव काफी क्रांतिकारी सिद्ध हुए हैं। रासायनिक और जैविक क्रियाओं में एंजाइम की विशेष भूमिका के कारण वैज्ञानिकों के लिए यह हमेशा से शोध का विषय बना हुआ हैं। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि विकासशील देशों की ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर होती समस्याओं का हल ‘‘ एंजाइम ’’ के इस्तेमालों द्वारा ही ढूंढा जा सकेगा। एंजाइम एक प्रकार का कार्बनिक उत्प्रेरक है वास्तव में एंजाइम भी उत्प्ररकों की तरह रायनिक क्रियाओं में भाग लेते हैं। लेकिन फिर भी यह उनसे काफी विभिन्न होते हैं। अब प्रश्न यह है कि उत्प्रेरक क्या है ? अपनी उपस्थिति से रासायनिक क्रियाओं में स्वयं निर्लिप्त रहने वाले इन पदार्थों को आज हम उत्प्रेरक के नाम से जानते हैं। रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप उत्प्रेरकों की भौतिक अवस्था में तो परिवर्तन होता है...

स्मिता पाटिल : बांकी हैं कुछ सपनीली यादें

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न सामान्य नायिकाओं वाले नाज नखरे, न कोई अतिरिक्त साजसंवार, न कोई तामझाम. एक साधारण सा सामान्य चेहरा, भावप्रवण, सहज  सशक्त अभिनय, हर चरित्र को ऐसे जान डाल कर जीना कि वह परदे पर जीवंत हो उठे, स्मिता की खासियत थी और इसके लिये वे समझदार सिने प्रेमियों के बीच सदियों याद की जाएंगी। गांवों में रहने वाली अल्लड़ और अनपढ़ नारी स्मिता का फिल्मी जीवन और व्यक्तिगत जीवन में अत्यंत विरोधाभास रहा है। विभिन्न भूमिकाओं में उसने सदियों से होते नारी शोषण , उत्पीड़न , कड़वाहट , मानसिक आघात और छटपटाहट को दिखाया है। उसने नारी को विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए स्वतंत्र , स्वालम्बी और मुक्ति की राह पर चलने की प्रेरणा दी है।यह याद कर पाना बहुत मुश्किल है कि स्मिता को गुजरे आज कई वर्ष हो गये हैं। कल की सी ही बात लगती है , जबकि स्मिता हमारे बीच से उठकर चली गयीं। उसी तरह जैसे कि एक प्रताड़ित नारी पुरुष प्रधान समाज में घर से निकल कर   पर चली जाती है। स्मिता पाटिल की सबसे असाधारण बात उनकी साधारणता थी। वह इतनी बड़ी सिने तारिका होकर भी सामान्य भारतीय नारी की तरह लगती थीं। गांवों में रहने वाली अल्लड़ और अन...

दूध पीना वास्तव में लाभदायक हैं?

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किसी युग में हमारे देश में भले ही दूध व शहद की नदियां बहती हों परन्तु इस समय ऊंचे मूल्य पर भी दूध मिलना सम्भव नहीं है। पुराने समय में छोटे व्यापारी दूध बेचा करते थे। परन्तु अब वह तरीका समाप्त हो रहा है। बड़े-बड़े उद्योगपति , सहकारी संस्थायें तथा सरकार दूध देने वाले पशुओं को पालकर दूध वितरण का कार्य करने लगे हैं। नगरों में यही प्रणाली चल पड़ी है । परन्तु वे इस मांग को पूरी नहीं कर पा रहे हैं। दूध पशुओं से प्राप्त होता है और पशु खेतों में उत्पन्न वस्तु ही खाते हैं। अगर पशुपालन में वृद्धि की जाय तो कृषि के लिए कम भूमि बच जायेगी। इस प्रकार पशुओं के दूध में कमी व वृद्धि होती रहेगी। वैज्ञानिक उपायों से दूध में कुछ वृद्धि हो सकती है परन्तु उसकी भी एक सीमा है। दूध का कोई अन्य विकल्प है ? इस प्रकार हम यह प्रश्न पूछने पर विवश हैं कि क्या दूध का कोई अन्य विकल्प है ? यहां यह उल्लेखनीय है कि कुछ स्थितियों में दूध सर्वथा आवश्यक है। इसके तीन कारण हैं। प्रथम यह कि कुछ माताओं के स्तनों में बच्चे के लिए पर्याप्त दूध नहीं होता या वे रोगी हो जाती हैं। गाय व भैंस के दूध में वे सभी पोषक तत्व पाये जाते हैं...

छत्रपति शिवाजी महाराज का राजतिलक?

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भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी एक क्रांतिकारी नेता के रूप में सदैव जाने जायेंगें। वर्ष 1674 तक उन्होंने काफी बड़े क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था और वे चाहते थे कि उनको हिन्दू राश्ट्र के सार्वभौमिक शासक के रूप में देखा जाये जिससे भारत को विदेशी शासकों से मुक्त कराकर स्वराज्य की स्थापना की जा सके। छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक में कुछ समस्यायें थीं। कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने उनका राजतिलक करने से इसलिए इन्कार कर दिया क्योंकि वह क्षत्रिय नहीं थे। इस पर शिवाजी ने पंड़ितों की एक बहुत बड़ी टीम बनाई और औपचारिक राजतिलक के लिए उनकों तमाम रीति-रिवाजों और कायदे-कानूनों का पता लगाने के लिए कहा। इसी कड़ी में कुछ पण्डितों को उदयपुर और जयपुर भेजा गया जिससे वह राजपूत राजाओं के राजतिलक की प्रथा को समझ सकें। शिवाजी का राजतिलक करने के लिए बनारस के विद्वान गंगा भट्टा को पूना बुलाया गया। गंगा भट्टा ने घोषणा की कि शिवाजी सूर्यवंशी भगवान रामचंद्र के वंशज हैं और वह उच्च कुल के क्षत्रिय हैं। इस तरह पूरे वैदिक मंत्रों के साथ शिवाजी का राजतिलक सम्भव हुआ। कहा जाता है कि शिवाजी के राजतिलक के भव्य समा...