छत्रपति शिवाजी महाराज का राजतिलक?


भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी एक क्रांतिकारी नेता के रूप में सदैव जाने जायेंगें। वर्ष 1674 तक उन्होंने काफी बड़े क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था और वे चाहते थे कि उनको हिन्दू राश्ट्र के सार्वभौमिक शासक के रूप में देखा जाये जिससे भारत को विदेशी शासकों से मुक्त कराकर स्वराज्य की स्थापना की जा सके।

छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक में कुछ समस्यायें थीं। कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने उनका राजतिलक करने से इसलिए इन्कार कर दिया क्योंकि वह क्षत्रिय नहीं थे। इस पर शिवाजी ने पंड़ितों की एक बहुत बड़ी टीम बनाई और औपचारिक राजतिलक के लिए उनकों तमाम रीति-रिवाजों और कायदे-कानूनों का पता लगाने के लिए कहा। इसी कड़ी में कुछ पण्डितों को उदयपुर और जयपुर भेजा गया जिससे वह राजपूत राजाओं के राजतिलक की प्रथा को समझ सकें। शिवाजी का राजतिलक करने के लिए बनारस के विद्वान गंगा भट्टा को पूना बुलाया गया। गंगा भट्टा ने घोषणा की कि शिवाजी सूर्यवंशी भगवान रामचंद्र के वंशज हैं और वह उच्च कुल के क्षत्रिय हैं। इस तरह पूरे वैदिक मंत्रों के साथ शिवाजी का राजतिलक सम्भव हुआ। कहा जाता है कि शिवाजी के राजतिलक के भव्य समारोह में 10 लाख लोग रायगढ़ के किले में एकत्रित हुए थे। शिवाजी ने अपने गुरू श्री रामदास स्वामी और मॉं जीजीबाई से आशीर्वाद प्राप्त किया।

राज सिंहासन पर बैठने से पहले षिवाजी ने देश के कई धर्म स्थलों का दौरा किया। उन्होंने भगवान शिव के मंदिर में भी कई दिनों तक पूजा अर्चना की। उनको सोना, चांदी, तांबा, जिंक, टीन, लोहा जैसे सात धातुओं में अलग-अलग तौला गया और बाद में यह सब राजतिलक समारोह में आने वाले लोगों में बांट दिया गया। राजतिलक का समारोह 5 जून को शुरू हुआ । शिवाजी ने गंगा नदी से आये पवित्र जल में स्नान किया और सारे दिन उपवास किया। राजतिलक 6 जून को हुआ। वह प्रातः जल्दी उठे और स्नान तथा पूजा पाठ के साथ उन्होंने अपने परिवार के पुजारी गंगा भट्टा और अन्य विद्वान ब्राह्मणें को गहने और कपड़े दान में दिये। शायद राजतिलक समारोह का सबसे मुख्य आयोजन उनका जलाभिषेक था।

स्वच्छ सफेद कपड़े और फूलों की माला तथा सोने के आभूषण पहने हुए शिवाजी अभिषेक स्नान के लिए गये । वे सोने से जड़ित स्टूल पर बैठे और उनके बगल में उनकी पत्नी सौर्याबाई अपनी साड़ी की गांठ बांधकर उनके साथ बैठीं। राजकुमार शम्भा जी पीछे बैठे। आठ मंत्री सोने के बर्तनों में गंगाजल लेकर पास खड़े हुए और उन्होंने यह जल मंत्रोंचारण के बीच शिवाजी और उनकी रानी व युवराज पर डाला। 16 राजसी महिलाओं ने अपने हाथ में दीपक लेकर उनकी नज़र उतारी जिससे किसी अपशगुन की छाया उन पर न पड़ सके।  छत्रपति शिवाजी मध्ययुगीन भारत के पहले हिन्दू सम्राट के रूप में राज्य सिंहासन पर बैठे। वाराणसी के एक पन्डित ने उन्हें सूर्यवंशीय भगवान राम का वंशज घोषित किया। दो दिन चले राज्याभिषेक के समारोह में 10 लाख लोग एकत्रित हुऐ थे।इसके बाद शिवाजी ने कपड़े बदलकर राजसी कपड़े पहने और मोती व जवाहरों से जड़ा हुआ साफ़ा पहना। उन्होंने अपनी तलवार व अन्य शस्त्रों की पूजा की तथा गुरूजनों को प्रणाम किया । ज्योतिषियों के द्वारा निर्धारित समय पर वह राजसिंहासन की तरफ बढ़े।

उनका सिंहासन बहुत भव्य था ओर इसको महीनों की कड़ी मेहनत के बाद बनाया गया था। सिंहासन का निचला भाग सोने की प्लेट से जड़ा था और इसी तरह सिंहासन के आठ खम्बे जवाहरात और हीरों से जड़े थे। उनके उपर सोने की कढ़ाई का एक छत्र लगा था। शाही सिंहासन भारतीय कला और मुगल वैभव का एक शानदार नमूना था। सिंहासन की गद्दी पर शेर की खाल और उपर शनील का कपड़ा लगा था।  जैसे ही शिवाजी राजसिंहासन पर बैठे सोने और जवाहरातों सें बने फूल आस पास के लोगों पर निछावर किये गये। कुलीन परिवारों की 16 वृद्ध महिलाओं ने आरती उतारी। ब्राह्मणों ने मन्त्र पढ़े और सम्राट शिवाजी को आशीर्वाद दिया। सारा वातावरण जय शिवाजी महाराजकी आवाज से गूंज उठा।#

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मीडिया स्वामित्व में बदलाव की आवश्यकता

मूर्तिकला कौशल और उसका इतिहास

आध्यात्मिकता की राह में पत्रकारों की कठिनाइयां