आए दिन गर्मी में हो रहा है इजाफा


तमाम समझाइश और सख्ती के बावजूद पराली (पुआल) को जलाना नहीं रुक सका। नतीजतन, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर) में प्रदूषण का स्तर शरद ऋतु में भी कम नहीं हुआ। उत्तराखंड, हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में गर्मियों में आग लगती है जो कई दिनों बाद बुझ पाती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केंद्र और राज्यों में बनने के बाद भी फैक्ट्रियों व गाड़ियों के अनियंत्रित धुएं से हम सभी भलीभांति परिचित हैं। ऑस्ट्रेलिया में लगी आग अभी तक बुझ नहीं पा रही है। यही स्थिति ब्राजील और अमेरिका की भी है।

पर्यावरण को लेकर हम बिल्कुल सजग नहीं है तभी तो राजस्थान का अरावली पहाड़ के अब निशान बचे हैं। वन संपदा सहित प्रकृति प्रदत्त उपहारों को हम सहेज के नहीं रख पा रहे हैं, इसलिए कहीं तापमान में अतिवृद्धि तो कहीं शून्य से पचास डिग्री नीचे पर लोग तनावग्रस्त होकर जीवनयापन कर रहे हैं। मानव जीवन छोटा हो रहा है। कई पशु पक्षियों के नस्ल तबाह और विलुप्त हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को लेकर विश्वस्तरीय बैठकें बेनतीजा समाप्त हो रही है। जैव विविधता बोर्ड का गठन हो गया, किंतु वन्य प्राणियों की सुध नहीं है।

विकास के नाम पर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, पहाड़ को समाप्त करना, नदियों को प्रदूषित करना, बालू ढोने पर अनियंत्रण, अतिक्रमण आदि के कारण पर्यावरण नष्ट हो रहा है। जल विद्युत के नाम पर जलधारा को अपनी सुविधानुसार मोड़ने के कारण नदियां सूख रही है। भू-जल स्तर चिंताजनक स्थिति पर पहुंच चुका है। बरसात में कमी और उसके पैटर्न में हो रहे बदलाव से बाढ़ और सुखाड़ ज्यादा भयावह हो गए हैं। इसका कृषि उत्पादन पर घातक असर पड़ा है।

नेशनल सैंपल सर्वे 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण उपभोक्ताओं की मांग घट कर 40 साल पीछे चली गई है। इस कारण किसानों की आय घटी है और रोजगार की खातिर पलायन दर में बेतहाशा वृद्धि हुई है। देश में हर मर्ज का एक ही इलाज है कोर्ट में दस्तक और फिर वर्षों बाद निर्णय। इसके बाद प्रशासन सजग होता है। पर्यावरण को लेकर भी यही पटकथा दोहरायी जाती है। बिहार में हालांकि कृषि विभाग ने खेतों में पुआल जलाने वाले 369 किसानों को चिन्हित किया है। ऐसे कृषकों को अगले 3 वर्षों तक कृषि सब्सिडी या कृषि से संबंधित किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं दिया जाएगा। उधर हरियाणा सरकार ने पराली को खेत में ही नहीं जलाने वालों को ₹100 प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में औसत तापमान में बढ़ोतरी व गर्म हवाएं चलने से वायरल और रोग वाहक जीव (मच्छर-मक्खी आदि) जनित बीमारियों में 200 फ़ीसदी तक इजाफा हुआ है।

ई.एन.जे. की रिपोर्ट के मुताबिक इन राज्यों में गर्मियों के दौरान अधिकतम तापमान में 4 डिग्री तक की बढ़ोतरी रिकॉर्ड की गई है। सर्द दिनों की संख्या में 30-35 फ़ीसदी की कमी हुई है। गर्म दिन बढ़े हैं। दो बड़े खतरे सामने आए हैं- एक विषाणु जनित रोग (वायरल डिजीज) है, तो दूसरा रोग वाहक जनित (वेक्टर बार्न) बीमारियां है। गर्म दिन और गर्म रातों की संख्या में तकरीबन 30-40 फ़ीसदी तक का इजाफा है। लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक 1.1 डिग्री तापमान धरती का बढ़ गया।

*दुनिया में जलवायु परिवर्तन से हर साल डेढ़ लाख लोगों की समय पूर्व मौत।

* देश में गत वर्ष बाढ़ और तूफान से 430 लोगों की मृत्यु।

*अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली एन.सी.आर में पराली के कारण भयावह स्थिति।

*दुनिया में डेंगू के मामले 30 गुना तक बढ़ गए।

लांसेट फाउंडेशन की हालिया जारी रिपोर्ट के मुताबिक आज जन्म लेने वाला हर बच्चा अपने जीवन में एक बार ऐसी जलवायु में सांस लेगा, जो औद्योगिक काल से पहले के दौर की तुलना में 4 डिग्री ज्यादा गर्म है। उसे बचपन, किशोरावस्था, वयस्क होने से लेकर वृद्धावस्था तक जलवायु परिवर्तन प्रभावित करेगा। गरीब बच्चों में कुपोषण बढ़ रहा है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ इन बीमारियों का खतरा बढ़ता जाता है, क्योंकि शरीर को लगातार इन प्रभावों का सामना करना पड़ता है। आने वाले समय में जीवन में बार-बार चरम मौसमी कठिनाइयों का सबसे बड़ा खतरा होगा, जो सेहत के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। बढ़ते तापमान और अत्यधिक गर्मी व लू जैसी घटनाओं से आबादी की श्रम क्षमता भी लगातार गिर रही है। रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 45 अरब संभावित कार्य घंटे की प्रति तुलनात्मक रूप से जलवायु परिवर्तन के कारणों से हुई। अमेरिका और दक्षिण अमेरिकी देशों में कामकाज के संभावित 15-20 फीसदी घंटे खो दिए। इस रिपोर्ट में एक और बड़ी चिंता व्यक्त की गई है कि सब इसी तरह चलता है। यह सोचनीय है।

अगर हम सब ने इसे हल्के में लिया तो दुनिया का मौलिक स्वरूप ही बदल जाएगा। जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है कि आस्ट्रेलिया में महीनों से लगी आग बुझ नहीं पा रही है। डेढ़ करोड़ हेक्टेयर के पेड़-पौधे खाक हो गये कई जीव जंतुओं की प्रजातियां खतरे में है। लगातार उठ रहे धुएं से प्रदूषण बढ़ गया है। मेलबर्न शहर की वायु गुणवत्ता दुनिया में सबसे बदतर दर्ज की गई। कुछ इलाकों में अचानक भारी बारिश से बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है। पर्यटन उद्योग को करीब 5000 करोड़ का नुकसान हुआ।

यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी स्थित स्कूल ऑफ लाइफ एंड एनवायरनमेंट साइंसेज के प्रोफेसर क्रिस्टोफर डिकमैन के विचार में, भीषण अग्निकांड में लगभग 1 बिलियन पशु पक्षियों की अकाल मृत्यु हो गई। कई पशु प्रजातियों यथा पोटोरू, एंटेक्निस, कॉकटू, कोआलस, जबकि पादप में बी की बड़ी संख्या में नष्ट होने से कृषि व्यवस्था चौपट हो रही है। मिट्टी की स्वाभाविक उर्वरा को बनाए रखना अब चुनौती बन जाएगा। केंचुआ की भांति बी उर्वरा को बनाए रखता है। 2018 में शुरू हुआ अकाल और फिर बाढ़ से पूरा ऑस्ट्रेलिया कराह रहा है। समय रहते ना चेते तो जलवायु परिवर्तन का विकराल रूप मानव, पशु-पक्षी को लील जाएगा। #

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