आत्मकथा : जनसंचार की राह से --- डॉ. रामजीलाल जांगिड़
पुराने कागज देख रहा था। एक रजिस्टर में अधूरी सूची मिल गई। मैंने 1955 में अपने गृह नगर से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। प्रमाण पत्र अंग्रेजी में मिला यूनिवर्सिटी ऑफ राजपूताना का। जारी किया था रजिस्ट्रार एम.एन. तोलानी ने। प्रथम श्रेणी मिली। अपने गृह नगर से ही वर्ष 1957 में विज्ञान में इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रमाण पत्र फिर अंग्रेजी में उन्हीं रजिस्ट्रार ने जारी किया। यूनिवर्सिटी ऑफ राजपूताना का। जुलाई 1957 में महाराजा कॉलेज, जयपुर में बी.एस.सी. (प्रथम वर्ष) में प्रवेश लिया, अंक सूची और बी.एस.सी. की उपाधि मिली अंग्रेजी में। विश्वविद्यालय का नाम बदल गया था। नया नाम था 1959 में यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान। अप्रैल 1962 में विश्वविद्यालय इतिहास विभाग से इतिहास में मास्टर आफ आर्ट्स परीक्षा उत्तीर्ण की। उपाधि हिंदी में मिली, राजस्थान विश्वविद्यालय की। जारी करने वाले वाइस चांसलर थे झ्र डॉ. मोहन सिंह मेहता। 13 जनवरी 1968 को राजस्थान विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ फिलासफ़ी (कला) की उपाधि हिन्दी में मिली। हस्ताक्षर किया था। तत्कालीन वाइस चांसलर प्रो. मु.वि. माथुर ने। इन दोनों कुलपतियों का भरपूर आशीर्वाद मिला।
जातक का कोई काम जिन्दगी भर नहीं रुकेगा
गुरुजनों का स्नेह प्रारंभ से लेकर शिक्षा समाप्त करने तक लगातार मिला। जिस दिन ब्रह्माजी मेरी कुंडली लिख रहे थे, लगता है वह उस दिन प्रसन्न मुद्रा में थे। उन्होंने लिखा 'जातक का कोई काम जिन्दगी भर नहीं रुकेगा। उसे जब जरूरत पड़ेगी, कोई न कोई मदद के लिए स्वयं आ जाएगा। उसे पुकारना नहीं पड़ेगा।' एक पंक्ति और जोड़ दी ह्लजातक को कभी पैसों की दिक्कत नहीं रहेगी।ह्व
पूरा ससुराल ही डॉक्टरों से भरा दे दिया
अब उन्हें लगा कि स्वास्थ्य की देखभाल की भी व्यवस्था करनी है। उसके लिए एक डॉक्टर काफी हो सकता था, मगर पूरा ससुराल ही डॉक्टरों से भरा दे दिया। चाचा ससुर परिवार के खर्चे पर लखनऊ और आस्ट्रिया पढ़े। साले डॉक्टर, साढू डॉक्टर, साली डॉक्टर, सलहज डॉक्टर, भतीजे डॉक्टर, भांजे डॉक्टर, भांजिया डॉक्टर, भतीजियों की बेटियाँ डॉक्टर। हर विभाग के डॉक्टर। मैंने कहा- प्रभो ! इतनी दया काफी है। प्रभु ने कहा- चुप रहो। शादी के बाद भारत और श्रीलंका में आयुर्वेद का डंका बजाने वाले डॉक्टर हीरालाल को भेज दिया। उन्होंने अंग्रेजी और हिन्दी में आयुर्वेद पर लगभग 50 पुस्तकें लिख डालीं। चार पुस्तकें हमारे परिवार को समर्पित कर दी। मेरे दूसरे और तीसरे क्रम के डॉक्टर सालों को, मेरी पत्नी और मुझे। उनकी पत्नी डॉक्टर सुधा केंद्रीय विद्यालय में योग शिक्षिका इच्छा हो तो अनुलोम-विलोम, भ्राभरी और भस्रिका प्राणायाम सीखें।
स्वास्थ्य की रक्षा की 24*7 जिम्मेदारी
ब्रह्मा जी रुकने वाले कहां थे? शादी के बाद पत्नी को नौकरी मिली दिल्ली विश्वविद्यालय में। उनके कालिन्दी कॉलेज की सहेली डॉक्टर सीतेश भाटिया को होम्योपैथिक चिकित्सा का अच्छा ज्ञान है। उनके पिता स्वर्गीय प्रो. (डॉ.) बी.एम.भटिया ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्र पढ़ाया था। इसलिए घर बैठे होम्योपैथिक चिकित्सा का लाभ भी मिला। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य केंद्र की लोकप्रिय डॉ. ऋतु तंवर से सरे राह चलते चलते मुलाकात हो गई। उन्होंने मेरे स्वास्थ्य की रक्षा की 24 7 जिम्मेदारी ले ली।
मैं ठहरा कट्टर शाकाहारी
डॉ. ऋतु मुस्कुराती हैं तो और सुन्दर लगती हैं। इतिहास में दो भोज प्रसिद्ध हैं। शबरी का राम को बेर खिलाना और कृष्ण का विदुर के घर साग खाना। 08-12-2019 को डॉ. ऋतु की इच्छा हुई अपने हाथों से बना कर मुझे खाना खिलाने की। कहा-अपनी कार में लाऊंगी और छोडूंगी। मैंने सूची सौंपी क्या खाना है। मैं ठहरा कट्टर शाकाहारी। आंवला, नींबू, गिलोय, मूली, गाजर, खीरा, टमाटर, खाने वाला। उसने मेरी सूची की दस सब्जियां बना डालीं। खीर, रसगुल्ला दही बड़ा अलग। अपनी बहनों और बहनोई से मिलवाया। ब्राह्मण होने के नाते पायजामा कुर्ता अलग से दक्षिणा में। ऐसी स्नेही और उदार डॉक्टर किसे मिलते हैं? ये था इतिहास का तीसरा भोज -ह्लऋतु भोजह्वे
“होगा वही जो राम रचि राखा”
हम केवल उस शक्ति की कुछ देर के लिए भेजी हुई कठपुतलियां हैं, जो सृष्टि चलाती हैं। ये रिश्ते पिछले जन्म के रिश्तों का ही इस जन्म में विस्तार है। शायद आत्माओं का कोई झुंड होता है, जो हर जन्म में मिलती हैं। 12 अगस्त 2015 को अपनी पत्नी के जन्म दिवस समारोह के अंतर्गत मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलतराम महिला कॉलेज में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी रखी थी। उसमें मेरे वरिष्ठ सहयोगी प्रो. प्रदीप माथुर मेरठ विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मंजु गुप्ता को मुझसे मिलवाने लाए।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की चाह
डॉ. मंजु दिल्ली में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन करना चाहती थी। मैंने पूछा - अब तक क्या किया है? उसने बताया - लोधी रोड के इस्लामिक कल्चरल सेंटर को ढाई लाख रुपए में बुक किया है। मैंने कहा - पैसे वापस ले आओ। मैं मुफ्त में जगह दिलवा दूंगा। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज का तीन घंटे के एक लाख रुपये किराया वाला सभागार मुफ्त दिलवा दिया। डॉ. मंजु ने 31अक्टूबर से 2 नवम्बर 2015 तक शानदार अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कर लिया।
क्या पूर्व जन्म में मुझसे कोई रिश्ता था
उसने कहा कि मेरे माता-पिता और सास-ससुर नहीं रहे, आज से आप ही मेरे माता-पिता हैं। यहां भी डॉ. ऋतु वाला प्रश्न उठा। क्या डॉ. मंजु का पूर्व जन्म में मुझसे कोई रिश्ता था। इतने लोगों में मुझ में ही उसे पिता दिखा। मैंने मान लिया। मेरी धर्म पुत्री डॉ. मंजु के पति डाक्टर राजीव गुप्ता ह्रदय रोग विशेषज्ञ हैं और किसी निजी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल भी हैं। निहायत शरीफ और विनम्र। मैंने ब्रह्मा जी को एक और विशेषज्ञ दामाद डॉक्टर अपने जीवन में भेजने के लिए फिर से बड़ा वाला धन्यवाद दिया।
डॉ. मंजु शान्त बैठने वाली कहां थी
डॉ. मंजु ने मुझे इस सम्मेलन का सलाहकार बनाया और हंसराज कॉलेज की प्राचार्य तथा मेरी शिष्या डॉ. रमा को सम्मेलन का निदेशक। डॉ. मंजु शान्त बैठने वाली नहीं है। उसने 14 से 16 अप्रैल 2017 तक मेरठ विश्वविद्यालय में दूसरा सफल अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कर डाला। तीसरा अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन उसने मार्च 2020 में नेपाल में किया है। उसका बेटा और बेटी अमेरिका में बसे हैं। उसका भाई अपने पिता के नाम से बरेली में विश्वविद्यालय चलाता है। छोटी बहन अर्चना का ससुराल मुंबई में व्यापारिक जहाज का मालिक है। उसने दिल्ली और मेरठ के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के कई संतों की मुझसे अध्यक्षता कराई।
तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है, बेटी
डॉ. मंजु को भारत सरकार ने कई परियोजनाएं दी हैं। योग्यता देखकर। डॉ. राजीव सम्मेलनों के आयोजन में उसकी खुलकर मदद करते हैं, इसलिए मैं उनका प्रशंसक हूं। पत्नी की भावना का मान। उनका कहना है कि डॉ. मंजु सोने का कोई गहना तो मांग नहीं रही है शिक्षा का प्रचार ही तो कर रही है। कितने कम पति अपनी पत्नी की खुशी के लिए मन से साथ आते हैं। डॉ. मंजु इस दृष्टि से भाग्यशाली हैं। तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है, बेटी।
हरदम मदद के लिए तैयार
10 अगस्त 2016 को अपनी पत्नी के जन्म दिवस समारोह में दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर के प्रसिद्ध हंसराज कॉलेज में मैंने एक स्वास्थ्य शिविर लगाया था। उसमें दिल्ली के शक्ति नगर चौक पर स्थित अग्रवाल मल्टीस्पेशिलेटी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अमरेंद्र कुमार ने बड़ी मदद की थी। वह हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। मितभाषी और मृदुभाषी। हमेशा एक दम बुद्ध जैसी शान्त मुद्रा में रहते हैं। हरदम मदद के लिए तैयार। हे प्रभु, आपने एक और डॉक्टर मदद करने के लिए उपलब्ध करा दिया है। आपको एक और धन्यवाद बड़े वाला। दूसरा भी हृदय रोग विशेषज्ञ।
गृह नगर पहुंच जाते हैं
21 से 23 सितंबर 2018 को हिमाचल प्रदेश के बडू साहब इटरनल विश्वविद्यालय में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में डॉ. रीता अग्रवाल से परिचय हुआ। उसके पति भी डॉक्टर हैं। डॉ. रीता का परिवार मेरे गृह नगर से जाकर कई दशक पहले कोलकाता में बस गया था। रीता का जन्म वही हुआ और पढ़ाई भी कोलकाता में हुई थी। वह बसन्त विहार नई दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल और कई अन्य अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञा के रूप में सेवाएं देती हैं। बेहद नम्र। मदद को हमेशा तैयार। राजस्थानी में बात करके हम दोनों कल्पनाओं में अपने गृह नगर पहुंच जाते हैं। हे ब्रह्मा जी! मेरे डाक्टर शुभचिंतकों की संख्या आप लगातार बढ़ा रहे हैं। ब्रह्माजी बोले- आगे आगे देखिए होता है क्या ?
हर समय मदद के लिए उपलब्ध
डॉ. हरीश कुमार शर्मा की गिनती भारत के प्रमुख प्लास्टिक सर्जनों में की जाती है। वह सफदरजंग अस्पताल के वरिष्ठ डाक्टरों में से एक हैं। हर समय मदद के लिए उपलब्ध। उनकी पत्नी डॉ. इंदु दिल्ली में स्त्री रोगों का अस्पताल चलाती हैं। डॉ. इंदु के पिता 10 सितंबर 2017 को 90 वर्ष के हो गए थे। डॉ. हरीश आग्रह करके मुझे अपने ससुराल में सम्मान समारोह में ले गए थे। बिजनौर (उत्तर प्रदेश) के डॉ. हरीश समाज सेवा के लिए समर्पित हैं हमेशा।
यारों के यार हर समय तैयार
पहलवान की कद काठी वाले मेरे एक और मित्र हैं रामपाल जी। वह हरदेवपुरी, शाहदरा, दिल्ली में माउंट एवरेस्ट स्कूल चलाते हैं। उनके डाक्टर बेटे और बहू डॉ. प्रतिभा को मैंने सम्मानित किया था। जो मदद चाहिए वह तुरंत देंगे। मुझे 15 फरवरी 2017 को अपने स्कूल के वार्षिक समारोह का अध्यक्ष बनाया था। यारों के यार हर समय तैयार। हे ब्रह्माजी! इतने शुभचिन्तक डॉक्टर हैं। मगर 80 साल में मुझे कभी बुखार, सर्दी, जुकाम, खांसी, नहीं आई न हृदय, फेफड़े, और यकृत में कोई कष्ट हुआ। तनावमुक्त जीवन रहा। इसी तरह मेरी पत्नी 77 वर्ष तक कभी अस्पताल नहीं गई। एक बार गई अगस्त 2016 में और लौटी नहीं।
गाँधी तथा विनोबा भावे के विचारों से जोड़ना
पुराने कागजों में जुलाई 1957 से अप्रैल 1959 तक की गतिविधियों की कुछ जानकारी मिली। इस अवधि में मैं 10 काम एक साथ कर रहा था। सबसे पहला, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और गणित की पढ़ाई। दूसरा-आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बने रहने के लिए गणित की ट्यूशन। तीसरा - भाषण प्रतियोगिताओं में भागीदारी और उनका आयोजन। चौथा- हिंदी और अंग्रेजी के दैनिक समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों की रिपोर्टिंग तथा लेखन। पांचवां, आकाशवाणी के जयपुर केंद्र में युव वाणी कार्यक्रम में भागीदारी। छठा, जयपुर में ललित कला के क्षेत्र में शोध। सातवां, संगीत और ललित कलाओं के कार्यक्रमों के आयोजन में सहयोग देना। आठवां, जयपुर में विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनियां लगाना। नवां, महाराजा कॉलेज के छात्र संघ और कॉलेज की डिबेटिंग सोसायटी को मंत्री के नाते सक्रिय बनाए रखना। दसवां, गांधी अध्ययन केंद्र में बौद्धिक चर्चाएं कराना और छात्रों को गाँधी तथा विनोबा भावे के विचारों से जोड़ना। ये दोनों महापुरुष मेरे प्रेरणा स्त्रोत हैं।
जो संपर्क बने, वे बाद में मेरी उन्नति के आधार बने
प्रतियोगिताओं और संगोष्ठियों से मैं जयपुर के पत्रकारों तथा साहित्यकारों के सीधे संपर्क में आ गया। इन आयोजनों का उदघाटन मैं प्रदेश के किसी मंत्री से कराता था और अध्यक्षता का आग्रह राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपतियों से करता था। इससे मैं कुछ राजनेताओं और शिक्षाविदों से व्यक्तिगत तौर पर जुड़ गया। शिक्षा ग्रहण करते हुए मेरे जो संपर्क बने, वे बाद में मेरी उन्नति के आधार बने।
मेरा विवाह नई दिल्ली में 10 मार्च 1966 को हुआ
इस बारे में और ब्यौरा देने के पहले मैं अपनी धर्मपुत्रियों की चर्चा पूरी कर लूं। सबसे पहले किस्सा धर्मपुत्री नंबर 1 का। मेरा विवाह नई दिल्ली के इंदिरा चौक (कनाट प्लेस) के होटल पैलेस हाइट्स में 10 मार्च 1966 को हुआ था। मेरी पत्नी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के बाद इसी विश्वविद्यालय के महिला कॉलेज में वर्ष 1964-65 में अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका के रूप में सेवाएं दी। और बाद में इसी विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. करने लगी। विवाह के समय मेरी पत्नी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली परिसर में अपने बड़े भाई और अस्थि विज्ञान के प्रसिद्ध विशेषज्ञ प्रो. (डॉ.) गोपाल कृष्ण विश्वकर्मा के साथ रहती थीं और मैं राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानन्द के साथ राजभवन, जयपुर में रहता था। एम्स के पास डिफेंस कालोनी में दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए नया कॉलेज खोला- माडर्न कॉलेज फॉर वीमैन। बाद में इसे हौज खास के पीछे प्लॉट दे दिया गया और नाम बदल कर दिया गया कमला नेहरू कॉलेज।
सटासट जवाब दे दिए
विवाह के बाद 5 महीने में मेरी पत्नी नई दिल्ली के माडर्न कॉलेज में अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका बन गई। 60 उम्मीदवारों में केवल उसके पास विश्वविद्यालय से जुड़े कॉलेज में पढ़ाने का अनुभव था। साथ में उसको पी.एच.डी. की शोध का अनुभव था। विषय पर पकड़ थी। सटासट जवाब दे दिए। वह घबराती नहीं थी। इसलिए पैनल पर उसका पहला नाम था।
राजौरी गार्डन वाले घर में बड़े मज़े से रहे
मैंने बाद में दिल्ली आकर मकान किराए पर लिया। पहले ग्रीन पार्क एक्सटेंशन में रहे। बाद में नवभारत टाइम्स के एक पंजाबी पत्रकार मित्र के घर में राजौरी गार्डन पहुंच गए। जे ब्लॉक में। ग्रीन पार्क एक्सटेंशन वाले घर का मालिक भला आदमी था। रिटायर्ड सरकारी अफसर था। कोई एडवांस किराया नहीं मांगा। राजौरी गार्डन वाले घर में बड़े मज़े से रहे।
तंदूर की व्यवस्था साथ ही कर देता है
मेरे मित्र की मां, बहू और बच्चों ने बड़ा ध्यान रखा। घर के सामने ही तंदूर था। छोले चढ़ाओ और गरमा गरम रोटी के साथ खाओ। प्रभु, तू देता है तो तंदूर की व्यवस्था साथ ही कर देता है। 09-08-1967 से 24-07-1968 तक हम लोग थीसिस को अंतिम रूप देने, टाइप कराने, भूल सुधारने और वाराणसी जाकर जमा करने में लगे रहे। मैं पी.एच.डी. (इतिहास) के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय में अपना शोध प्रबंध जमा करा चुका था। इसलिए अपनी पत्नी की मदद कर सकता था।
एक विज्ञापन कंपनी में काम करने लगा था
जुलाई 1968 में कालिंदी कॉलेज, पूर्वी पटेल नगर, नई दिल्ली में अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका के इंटरव्यू हुए। मेरी पत्नी का चुनाव हो गया। उसने कालिंदी कॉलेज में 25 जुलाई 1968 को प्रवेश किया। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर उसने अपनी मां की सेवा करने के लिए 31अगस्त 2000 को कॉलेज को लगभग 33 साल बाद विदा कह दिया। वह दिल्ली का भूगोल नहीं जानती थी। जयपुर से आकर मैं आसफ अली रोड स्थित एक विज्ञापन कंपनी में काम करने लगा था।
Friend in need is friend indeed
मेरे मकान मालिक मित्र वेद प्रकाश नंदा की पत्नी पेट में बच्चा होने के बावजूद टैक्सी में मेरी पत्नी को कालिन्दी कॉलेज, पूर्वी पटेल नगर में इंटरव्यू दिलाने लाई थी। मुसीबत में काम आए वही मित्र होता है।
पत्रकार बन गया
विज्ञापन एजेंसी में काम करने के बाद मैं 12 दिसम्बर 1968 को हिन्दी के दैनिक ह्लहिंदुस्तानह्व में पत्रकार बन गया। इसलिए हम दोनों के जीवन में शादी के बाद वर्ष 1968 महत्वपूर्ण रहा।
राम मिलाई जोड़ी
दोनों को पी.एच.डी. की उपाधियां 1968 के दीक्षांत समारोह में दी गई। मुझे 13 जनवरी 1968 को और मेरी पत्नी को 17 फरवरी 1968 कोे दोनों को हिन्दी में उपाधि पत्र मिले। पति आगे, अनुगामिनी पत्नी पीछे। एम.ए. की उपाधि पाने में वह आगे थी और मैं पीछे। इसे ही कहते हैं राम मिलाई जोड़ी।
पी.एच.डी. करते रहे
उसके एम.ए. (अर्थशास्त्र) के अंग्रेजी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए उपाधि पत्र पर लिखा है। 24 दिसंबर 1961। और मेरे एम. ए. (इतिहास) के राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा हिन्दी में जारी किए गए उपाधि पत्र लिखा है 19 जनवरी 1963। असल में मार्च 1959 में बी.एस.सी. की उपाधि पाने के बाद मैं 1 साल इसी में उलझा रहा कि मुझे एम.एस.सी. करना है या एम.ए.। जबकि मेरी पत्नी ने बी.ए. अर्थशास्त्र करने के तुरंत बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एम.ए. (अर्थशास्त्र) (प्रथम वर्ष) में प्रवेश ले लिया। लेकिन पी.एच.डी. हम लोग एक ही अवधि में अलग-अलग विश्वविद्यालयों से अलग-अलग विषयों में करते रहे। और एक ही साथ डॉक्टर (आफ फिलासफी) बने।
दोनों को एक संस्था ने स्मृति चिह्न दिए
मेरी पत्नी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सबसे कम उम्र में पी.एच.डी. की उपाधि पाने वाली युवती थी। इसलिए इस बारे में उनकी फोटो और खबर नई दिल्ली और वाराणसी के कई अखबारों में छपीं। दोनों को एक संस्था ने स्मृति चिह्न दिए। मियां बीवी दोनों एक साथ डॉक्टर बनने के लिए। सम्मान देने वालों की जय होे #
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