घड़ी का विकास कैसे हुआ
मनुष्य आदिकाल से ही समय को नापने के लिए विभिन्न उपाय करता चला आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार ईसा से कई सौ वर्ष पहले यूनान के लोग समय नापने के लिए रस्सों का प्रयोग करते थे। वे लोग एक रस्सी में बराबर दूरी पर आठ या दस गांठ लगाकर नीचे से रस्सी को आग ले सुलगा देते थे, रस्सी धीरे-धीरे सुलगती रहती थी रस्सी के एक हिस्से के सुलगने में लगने वाले समय को एक घंटा माना जाता था।
समय नापने की यह विधी
बहुत मंहगी पड़ती थी, क्योंकि इस विधी से तमाम
रस्सी जलकर नष्ट हो जाती थी। थोड़े समय बाद वहां के लोगों ने रेत घड़ी का विकास
किया। यह लोग मिट्टी के एक भारी बर्तन में महीन बालू या रेत भर देते थे, उस बर्तन में नीचे एक छोटा छेद होता था, उस बड़े
बर्तन को किसी खंबे पर पेड़ की टहनी से लटका कर उसके नीचे एक छोटा बर्तन रख देते
थे। रेत बड़े बर्तन से छोटे बर्तन में गिरती रहती थी, जब
छोटा बर्तन बालू से भर जाता था तो उसे हटाकर दूसरा रख दिया जाता था, इस बर्तन के बालू से भरने में लगने वाले समय को एक घंटा कहा जाता था।
कई यूरोपीय देशों के
लोग धूप घड़ी का प्रयोग करते थे। किसी बराबर मैदान में एक या दो मीटर लट्ठा गाड़
देते थे,
जैसे-जैसे सूरज घूमता जाता था वैसे ही उस लट्ठे की छाया भी घूमती
जाती थी। जितनी जगह में छाया घूमती थी उसके दस या अधिक बराबर भाग करके समय ज्ञात
कर लेते थे।
कई देशों के लोग जल
घड़ी का भी उपयोग करते थे। एक मीटर लंबे कांच की नली को दस बराबर भाग बनाकर उस पर
निशान लगा देते थे। नली का निचला सिरा काफी संकरा बनाया जाता था जिससे उसमें भरा
पानी धीरे-धीरे गिरता रहता था। नली पर पड़े नम्बरों या निशान से समय ज्ञात कर लिया
जाता था।
अभी तक के समय नापने
के सभी तरीके प्रमाणिक तौर पर सही समय की जानकारी नहीं दे पाते थे। इनके चलने की
गति अपने आप थोड़ी देर बाद ही घट-बढ़ जाया करती थी। इसके अलावा समय का कोई निश्चित
मात्रक नहीं था, सब देश अपने-अपने अलग समय के मात्रक
निश्चित किए थे।
शिक्षा और विज्ञान का
विकास जैसे-जैसे बढ़ता गया सूई से चलने वाली घडि़यों का विकास हुआ, फ्रांस के वैज्ञानिकों ने समय का मात्रक निश्चित किया जिसे सैकंड कहा गया।
एक सैकंड का समय सौरदिवस के 1/86400 भाग के बराबर रखा गया।
फिर बाद इसे बदल दिया गया और वर्ष 1955 में वर्ष 1900 के समय के 1/31556925.9747 भाग को एक सैकंड माना
गया।
थोडे ही दिन बाद वर्ष 1967 में घड़ी में परमाणु घड़ी का विकास हुआ तो समय का मात्रक सैकंड का मान
परमाणु घड़ी के हिसाब से निश्चित किया गया। परमाणु घड़ी के अनुसार सीजियम-133 के परमाणु से निकलने वाले विकिरण के 9,19,26,31,770
कम्पनों को एक सैकंड माना गया, समय का यही मात्रक
अर्न्तराष्ट्रीय रूप में स्वीकार किया गया है।
साठ सैकंड के बराबर
एक मिनट और साठ मिनट को एक घंटा कहा जाता है। पृथ्वी को अपनी धुरी या अक्ष पर एक
चक्कर लगाने में लगने वाले समय को चौबीस घंटा या एक दिन कहा जाता है। चन्द्रमा
द्वारा पृथ्वी की एक परिक्रमा में लगने वाले समय को एक माह माना जाता है। पृथ्वी
द्वारा सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने के समय को एक वर्ष कहा जाता है। हर देश का
समय अलग-अलग होता है, अर्थात किन्ही दो देशो की
घडि़यां आपस में नही मिलती है। जब सूर्य ठीक ऊपर होता है तो बारह का समय माना जाता
है।
इंग्लैण्ड के
ग्रीनविच नामक स्थान का मान शून्य माना गया है। इस स्थान से पूर्व की ओर जान में
घड़ी आगे हो जाती है, तथा पश्चिम की ओर जाने से
घड़ी पीछे हो जाती है। ग्रीनविच के समय को ‘ग्रीनविच मीन
टाइम’ कहा जाता है। हमारे देश का समय ग्रीनविच मीन टाइम के
अनुसार वहां से साढे़ पांच घंटा आगे है। कुछ देशों में घडि़या जाड़ो में अर्थात एक
नवंबर से 31 मार्च तक एक घंटा पीछे कर दी जाती है। इंग्लैण्ड,
फ्रांस और जर्मनी में ऐसा किया जाता है।
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